बातें तुम जो कहते हो, दिल में खुद ही हैं उतर जाती,
उन्हें फिर भूल जाना क्या, उन्हें दिल से लगाना क्या।
मैं अक्सर ही तेरे संग-संग भी तनहा ही जो रहता हूँ,
यूँ फिर पास रहना क्या, यूँ फिर दूर जाना क्या।
तेरे फुर्सत के लम्हों में ही तेरा हम जो साथ पाते हैं,
यूँ फिर याद करना क्या, यूँ फिर भूल जाना क्या।
जो कहने-सुनने से ही तुम, मेरे जब पास आते हो,
यूँ फिर पास आना क्या, यूँ फिर छोड़ जाना क्या।
रूठे-रूठे से रहते हो,
मेरे जब साथ होते हो,
बातें भी यूँ करते हो,
ज्यों बड़ी मुश्किल से सहते हो।
एहसानों की तरह मुझपे,
ये मेहरबानियाँ जो बख़्शी हैं,
यूँ फिर दिल लगाना क्या,
और दिल तोड़ जाना क्या।
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