बचपन हमारी ज़िन्दगी का वो हसींन पड़ाव है जहाँ लौटने को दिल हर वक़्त मचलता रहता है. बचपन वो वक़्त था जब कन्धे पर सिर्फ बस्ते का बोझ हुआ करता था और जब नन्हे दिल की हसरतें चाँद तक जाती थीं। स्कूल जाना सबसे मुश्किल काम था और रेस्पोंसिबिलिटी सिर्फ होमवर्क तक सीमित थी।
आज भी जब किसी पार्क से निकलते समय हँसते - खिलखिलाते बच्चों पर नज़र जाती है तो वक़्त थम सा जाता है और दिल फिर उन्ही की आँखों में अपना बचपन ढूंढने लगता है।
आज जब घर से दूर रहते हुए मेड का बनाया हुआ टिफ़िन ले के निकलता हूँ तो याद आता हैं कैसे रोज माँ से लंच में नई -नई चीज़ें देने की ज़िद करता था और स्कूल पहुँचने के बाद शायद ही उसमें से कुछ खाने को बच पाता हो। अलग ही थी बचपन की दुनिया, बचपन के सपने और बचपन की हसरतें। वो वक़्त तो लौट के नहीं आ सकता पर हम जरूर वक़्त-बेवक़्त उन सपनो के क़रीब जा सकते हैं, छोटे छोटे बच्चों के जरिये।
ऐसी ही एक कोशिश में करता हूँ छोटे भाई से बात करके। मुझे याद है जब वो पांच साल का था और मुझसे बेहद करीब हुआ करता था तो कैसे उसके मासूम से प्रश्न मुझे हँसने के साथ साथ सोचने पर मजबूर कर दिया करते थे। उसकी बातों और हरक़तों में एक ही दुनिया नजर आती थी। वो दुनिया पढ़-लिख समझदार बन हम कहीं और ही छोड़ आए हैं। उससे बातें करके मुझे समझ आया की बच्चों का नज़रिया हमे कितना कुछ सिखा सकता है। बशर्तें हम उन्हें सोचने और बोलने की आज़ादी दें और उनके दृष्टिकोड़ को समझने का प्रयास करें।
मुझे याद है जब वो अपनी पहली विदेश यात्रा पर सिंगापुर से लौट कर आया और बड़ी मासूमियत से मुझसे पूछ बैठा , "भैया, उनके होटल में वो लोग टॉयलेट में पानी क्यों नहीं रखते हैं?" जवाब में जब मैंने "जल -बचाव " के लाभ और जरुरत गिनाए तो वो पूछ बैठा की फिर हम लोग ऐसा क्यों नहीं करते , क्या हमे पानी की जरुरत है। इसके बाद की बातें "कल्चरल डिफरेंस ", आदत और जरुरत में उलझ कर रह गई। पता नहीं कितना उसे समझ आया और कितना मैं समझा पाया पर इतना जरूर है की उसकी अनुकलन प्रवर्ती को देख के अच्छा लगा।
सच है की बच्चों से बात करके हम बहुत कुछ सीख सकते है और हमे निश्चित ही इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए. बचपन में तो बहुत कुछ सीखा था पर वक़्त है की बच्चों से भी कुछ सीखा जाए।
बच्चों को बच्चा रहने दो,
हर बात जुबां से कहने दो,
मत बांधों उन्हें क़िताबों में,
उन्हें खुली हवा में बहने दो।
मिट्टी में गन्दा होने दो,
कीचड़ में कपडे धोने दो,
मत रोको बारिश में भीगने से,
बचपन को यूँ न खोने दो।
बच्चों को बच्चा रहने दो।
यूँ हँसते खेलते गाते से ,
वो खुद ही बड़े हो जायेंगे,
सब कुछ फिर भी हासिल होगा,
पर ये दिन फिर लौट न आएंगे !
चलिये जीतें है कुछ बचपन के दिन बच्चों के पसंदीदा नाश्ते के साथ. यहाँ क्लिक करे!
in association with Kellog's Chhocos Ke Saath Khuljaye Bachpan
चित्र unsplash.com से साभार संकलित !
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